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कंस के अत्याचारों से पीड़ित होकर पृथ्वी ने भगवान को पुकारा। और पतित पावन प्रभू ने नीलमणि के रूप में यशोदा की गोद में अवतार लिया। उधर प्रभू को देवी लक्ष्मी के बिना न रहा गया, अतः देवी लक्ष्मी भी राधा के रूप में वृषभान के आंगन की शोभा बनीं।
भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लिया, यह सुनकर देवता दर्शन को मचलने लगे। यहीं भोलेनाथ शंकर ने उनके गले में नीलमणि पहनाई।
कंस को जब यह आकाश वाणी हुई कि बीरो तुझे मारनेवाला तेरा जाल से बच निकला है तो अपने मृत्यु के भय से असुर वीरों को - कृष्ण की हत्या करने की आज्ञा दी। किन्तु बालक कृष्ण ने अपने चमत्कार से एक एक वीरों के प्राण हर लिये।
नन्हा नीलमणि अपने भोलेपन से यशोदा को लुभाता, इसी प्रकार धीरे धीरे चन्द्र की भाँति विकसित होने लगा। और फिर राधा से भी मिला। राधा और कृष्ण के रास-रंग कुछ दिन गोकुलवासियों को भी भाये किन्तु फिर वे उसी तरह दुष्ट जनों की आँखों में खटकाने भी लगे। और एक दिन राधा के आंचल पर कलंक के छींटे पड़े। इधर कंस के पाप का घड़ा भरने को आ गया, उसी मौक़े पर अक्रूर भी कृष्ण को मथुरा ले जाने के लिये आन टपका।
माँ की ममता, अपनी राधा का प्यार, गोप-गोपियों का साथ त्याग नीलमणि मथुरा चल दिये। वहाँ जाकर कृष्ण ने कंस को मारकर धरती माँ के आसुओं को पोंछे। पर, फिर भी उसे संतोष नहीं हुआ उन पथराई आँखों से राह तकती ममता और बन बन में पुकारती हुई उस राधा को क्या हुए- ये कोन कह सकता है? नीलमणि के विरह में वह राधा किस तरह बावरी होकर जंगलों में भटकने लगी-उसे नीलमणि में देखिए-
मधुबन तुम कैसे जब लग रहे खड़े। विरह में श्याम की काहे न उखर पड़े।।
(From the official press booklet)